चामुण्डा देवी



हिमाचल प्रदेश को देवभूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। हिमाचल में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है। इन मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जोकि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है।

काली माता शक्ति और संहार की देवी
चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। यह पालमपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां की प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अपनी और आकर्षित करता है। चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है। काली माता शक्ति और संहार की देवी है। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है। तब-तब माता ने दानवों का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया।

देवी दूर्गा ने सभी को वरदान
माता का नाम चामुण्ड़ा पड़ने के पीछे एक कथा प्रचलित है। मंदिर पुजारी डॉक्टर बनवारी लाल ने कहा कि चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को वरदान था की उन्हें कोई नहीं मार सकता। जिसके फलस्वरूप देवताओं ने देवी दूर्गा की आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया। माता ने उन्हें कहा कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यों से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात देवी दूर्गा ने अम्बिका नाम से अवतार ग्रहण किया। माता आम्बिका को चण्ड और मुण्ड असुरो ने देख लिया और उन्होने अपने राजा शुम्भ और निशुम्भ को माता के बारे मे बताया।

चण्ड और मुण्ड को माता के पास भेजा
यह वचन सुनकर शुम्भ और निशुम्भ ने चण्ड और मुण्ड को माता के पास भेजा और कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनों लोक के राजा है। वह दोनों तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते है। दोनो दैत्यों द्वारा कहे गए वचन माता को सुना दिए। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ और निशुम्भ दोनों ही महान बलशाली है। परन्तु मैं एक प्रण ले चूंकि हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करुंगी। चण्ड और मुण्ड को देवी देवी द्वारा मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना काली रूप धारण कर लिया और असुरो को यमलोक पहुंचा दिया। उन दोनों असुरो को मारने के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया।

जिंदा आदमी की बलि नहीं मिलेगी
वही मंदिर के साथ लगते शमशान घाट मे रोज एक शव जलाने के लिए आता है। इसकी  जानकारी देते हुए पुजारी ने कहा एक राक्षस को जिंदा आदमी की बलि का वरदान मिला था। एक बुढ़िया ब्राहमणी थी। जिसका नाम नंदी था। उसके दो बच्चे थे एक के बलि हो चुकी थी और दूसरे की बारी थी। बढ़िया रो रही थी साथ में उसको खाना खिला रही थी तो रोते-रोते हुए उस बुढ़िया ने भगवान शंकर को याद किया। भगवान शंकर साधु का रूप धारण करके यहां पहुंचे। बढ़िया से पूछने पर बढ़िया ने अपना पूरा दुख भगवान को सुनाया। उसके बाद से भगवान चामुण्डा में आकर बैठ गए। राक्षस ने बाण मारे जो पत्थर भी शीला पर लगे है। राक्षस ने देखा कि यहां कौन सी शक्ति आ गई है। थोड़ा आगे देखते राक्षस को साधु बैठे हुए दिखाई दिए। भगवान ने राक्षक को दर्शन देते हैं। उन्होंने कहा कि कहा कि आज से जिंदा आदमी की बलि नहीं मिलेगी। अपितु मृत व्यक्ति की बलि मिला करेगी। तब से यह प्रथा है प्रचलित है और प्रतिदिन यहां एक शव यहां आ ही जाता है।


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